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Devendra Prasad

Abstract

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Devendra Prasad

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राखी - विश्वास की

राखी - विश्वास की

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यूं तो विश्वास को ढूंढते हैं सब

बातों में

जज्बातों में

सपनों में, खयालों में

अंधेरों में, उजालों में

रिश्तों की हर डोर में

गुम हो चुके शोर में

सुबह और शाम में

अक्षर के हर नाम में


पर कहां मिलता है

वह विश्वास..?

जो प्रेम से सिंचित हो

ना भय वहां किंचित हो

जिसमे रक्षा का वादा हो

जो बंधन सीधा साधा हो

जो पाक दिव्य सी काया हो

जो धूप में शीतल छाया हो

जिसमे प्रेम आजीवन हो

जो स्वच्छ स्नेह का बंधन हो


हां मिलता है

कुछ रिश्तों में...

सम्पूर्ण मिले, ना किस्तों में

भाई बहना के प्यार में

हां यहीं, इसी संसार में


बहना के कोमल राखी से

यह प्रेम का बंधन गाता है।

भईया के वचनों, वादों में

विश्वास के गीत सुनाता है।।



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