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Hilal Saeed

Abstract

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Hilal Saeed

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राज़-ए-जिंदगी

राज़-ए-जिंदगी

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"वो जब करीब था मेरे किसी की ख्वाहिश ना थी मुझको,

वो जो रुख़सत हुआ मुझसे,

एक उस ही शख्स कि ख्वाहिश रही मुझको।"

रास्ते हमेशा वो नहीं होते जो हम देख रहे होते हैं,

बल्कि वो होते हैं जो नसीब मै लिखे होते हैं,


कुछ रास्ते ऐसे भी होते हैं जिन पर ना

चाहते हुए भी हमको चलना पड़ता है।

अक्सर ना चाहते हुए ऐसे हाल में रहना पड़ता

जो शायद किसी को बताने का सोचा ना जा सके,

हर शख्स की जिंदगी उसकी ख्वाहिशों के मुताबिक़ नहीं होती।


जिंदगी कभी-कभी हमसे हमारे जीने की वजह छिन लेती है,

कुछ रिश्ते जो हमारे लिए बेहद खास होते हैं

वो अकसर इस बेरहम जिंदगी की मुराद होते हैं।


ओर फिर होता है, कि आपको ना चाहते हुए ये

कुबूल करना पड़ता है ओर आप चेहरे पर झूठी

मुस्कराहट ओर खामोशी इखतयार कर लेते हैं।


खुदा जाने क्यो अब फिर, यह जिंदगी मुझको

उसी मुकाम पर ले आई है जहां एतबार, यकीन,

जैसे लफ्ज़ मेरी जान लिए जाते हैं,

मेरे सभी जख्मों को हवा दिए जाते हैं,

फैसले करने मेरे लिए अब मुश्किल हो रहैं हैं।


अब तो बस इस ही गुमान में रहता हूं हर वक्त,

शायद इस बार जिंदगी मुझे कुछ कहना चाहती हो,

कुछ दिखाना चाहती हो, कुछ समझाना चाहती हो,

शायद जिंदगी मेरे लिए इस बार खुशियाँ लेकर आयी हो,

यही सोचकर इसको कुबूल करके देखते हैं

चलिए थोड़ा सा इस जिंदगी के साथ

फिर से मुस्करा कर देखते हैं।


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