राज़-ए-जिंदगी
राज़-ए-जिंदगी
वो जब करीब था मेरे किसी की ख़्वाहिश
ना थी मुझ को, वो जो रुख़सत हुआ मुझ से,
एक उस ही शख्स कि ख़्वाहिश रही मुझ को।
रास्ते हमेशा वो नहीं होते जो हम देख रहे
होते हैं,
बल्कि वो होते हैं जो नसीब में लिखे होते हैं,
कुछ रास्ते ऐसे भी होते हैं जिन पर ना चाहते
हुए भी हमको चलना पड़ता है।
अक्सर ना चाहते हुए ऐसे हाल में रहना पड़ता
जो शायद किसी को बताने का सोचा ना जा
सके,
हर शख्स की जिंदगी उसकी ख़्वाहिशों के
मुताबिक़ नहीं होती।
जिंदगी कभी-कभी हमसे हमारे जीने की वजह
छिन लेती है,
कुछ रिश्ते जो हमारे लिए बेहद खास होते हैं
वो अक्सर इस बेरहम जिंदगी की मुराद होते हैं।
और फिर होता है, की आपको ना चाहते हुए ये
कबूल करना पड़ता है और आप चेहरे पर झूठी
मुस्कराहट और खामोशी इख्तयार कर लेते हैं।
ख़ुदा जाने क्यो अब फिर, यह जिंदगी मुझ को
उसी मुकाम पर ले आई है जहां ऐतबार, यकीन,
जैसे लफ्ज़ मेरी जान लिए जाते हैं,
मेरे सभी ज़ख्मों को हवा दिए जाते हैं,
फैसला करना मेरे लिए अब मुश्किल हो रहा है।
अब तो बस इस ही गुमान में रहता हूं हर वक्त,
शायद इस बार जिंदगी मुझे कुछ कहना चाहती हो,
कुछ दिखाना चाहती हो, कुछ समझाना चाहती हो,
शायद जिंदगी मेरे लिए इस बार ख़ुशियाँ लेकर
आयी हो,
यही सोचकर इसको कबूल करके देखते हैं।
चलिए थोड़ा सा इस जिंदगी के साथ फिर से
मुस्करा कर देखते हैं।
