क़ाबिले-तारीफ़
क़ाबिले-तारीफ़
दिल की बातें जान जाना क़ाबिले-तारीफ़ है,
तूफ़ान में दिया जलाना क़ाबिले-तारीफ़ है।।
इश्क़ था एक दौर में और आज क़ातिल हो गया,
उस शख्श से रिश्ता निभाना क़ाबिले-तारीफ़ है।।
वास्ते अपनों के सबकी जान हाज़िर है मग़र,
दुश्मनों से दिल लगाना क़ाबिले-तारीफ़ है।।।
पास आकर ही उसे चक्कर-सा आना लाज़िमी,
मुझको छूने का बहाना क़ाबिले-तारीफ़ है।
रूह से फ़िर जिस्म तक उसको सफ़र तो याद है,
और सब कुछ भूल जाना क़ाबिले-तारीफ़ है।।
दिल लगाकर क़त्ल करना अब तो जौहर है उसे,
पर आज भी खंज़र पुराना क़ाबिले-तारीफ़ है।।
एक ख़ूबी ये कि उसका घर बनारस है 'समर',
दिल तोड़कर गंगा नहाना क़ाबिले-तारीफ़ है।।