बेवफा
बेवफा
न जाने किस गली गुजरा जनाजा इश्क़ का मेरे,
ख़बर बस ये सुना था कि तेरी बारात आई है।
न जाने कौन-सा आँगन तेरे चेहरे से रौशन है,
हमारी ज़िंदगी में अब अमावस रात आई है।
ये दुनियाँ जानती है इश्क़ का मज़हब नहीं होता,
तो फ़िर मेरी मोहब्बत में कहाँ से जात आई है।
आख़िरी दिन जिंदगी का मुझे जी भर के रोना था,
सितम क़िस्मत का देखो आज भी बरसात आई है।
'समर' की आँख नें हरदम तेरा चेहरा दिखाया है,
ज़मानें में कहीं जब बेवफ़ा की बात आई है।।
