पुत्री-जन्म
पुत्री-जन्म
जब सुना लेगी पुत्री जन्म,
पिता के माथे पे हुई सिकन।
कुल का कैसे नाम होगा,
दहेज का कैसे इंतज़ाम होगा।
हुआ सोचकर व्यथित मन,
पड़ गया शिथिल उसका तन।
क्या कर दें हम उसका हनन,
छोड़ दें अपने मर्यादा का चलन।
पड़ा था यूँ हीं असमंजस में
देखे बिटिया हर कण कण में,
बदलते हैं भाव क्षण क्षण में,
क्या अस्तित्व नहीं पुत्री का जग में,
भर रही उड़ान आज बेटियाँ नभ में।
दुनिया को दे रही चुनौती पग पग में।।
ले रही हिलोरें कई भावनायें,
पल पल हृदय स्वयं को समझाए।
न कर ऐसा आत्मा से आवाज़ आये,
मत बन पुत्री हन्ता, कर चिंतन,
जीने दे उसको भी उसका बचपन,
नभ दे उसकी आशाओं को,
होंगे उसके भी कितने सपने।
दे शिक्षा उसको, कर रक्षण।।
बन कर वो राष्ट्र की बेटी,
नाम करेगी तेरा एक दिन।
धन की चिंता मत कर तू,
लाएगी लक्ष्मी कर अपने जतन।
सुन के अपने आत्मा की आवाज़,
स्वयं से हुआ बहुत नाराज़।
कैसे सोचा मैनें पुत्रीवध का,
अपमान किया है नूतन संबंध का।
मनाऊँगा मैं ख़ुशियाँ पुत्री जन्म पर,
निश्चय ही वो एकदिन, छू जाए गगन।
नाज करेगी दुनिया उसपर,
कभी भूल न पायेगा वतन।
