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AJAY AMITABH SUMAN

Abstract

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AJAY AMITABH SUMAN

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प्रमाण

प्रमाण

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अनुभव के अतिरिक्त कोई आधार नहीं ,

परमेश्वर  का  पथ  कोई व्यापार नहीं।

प्रभु में ही जीवन कोई संज्ञान क्या लेगा?

सागर में ही मीन भला प्रमाण क्या देगा? 


खग जाने  कैसे कोई आकाश भला?

दीपक जाने क्या है ये प्रकाश भला?

जहाँ स्वास  है प्राणों का संचार वहीं,

जहाँ प्राण है जीवन का आधार वहीं।


ईश्वर  का  क्या दोष भला  प्रमाण में?

अभिमान सजा के तुम ही हो अज्ञान में।

परमेश्वर  ना छद्म  तथ्य तेरे ही प्राणी,

भ्रम का  है आचार पथ्य तेरे अज्ञानी ।


कभी कानों से सुनकर ज्ञात नहीं ईश्वर ,

कितना भी पढ़ लो प्राप्त ना परमेश्वर।

कह कर प्रेम की बात भला बताए कैसे?

हुआ नहीं हो इश्क उसे समझाए कैसे?


परमेश्वर में   तू  तुझी  में  परमेश्वर ,

पर तू ही ना तत्पर नहीं कोई अवसर।

दिल में है ना  प्रीत  कोई उदगार कहीं,

अनुभव के अतिरिक्त कोई आधार नहीं।



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