प्रेम
प्रेम
लिखता रहूं तुझे मै जीवन भर,
मैं लेखक तो लेखनी तुम बन जाओ !
हो अंतर बस इतना की,
मैं कलम तो तुम स्याही प्रिये !
मैं किसी किनारा सा, संग तेरे चलता रहूँ !
तू किसी दरिया सी, मुझे लहरों सी छेड़ जाए !
मैं किसी कोहसार सा, तुझे ताकता रह जाऊँ !
तू किसी अब्र सी, मुझे चूम जाए !
पथिक सा मैं, तुम हो पीपल की छाया !
मैं प्यासा तो, तुम तृप्त करती मेरी काया !
तजते नहीं तजता उसका मोह-माया।
क्या करूँ ? अब तू ही बता...
एक तुम ही तो हो जिसके सिवा न कोई दूजा भाया !

