माँ
माँ
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शब्दों से जो बयां ना हो सके
वो अल्फाज हैं माँ,
समझा ना सकूं कभी जिसे
दिल के वो जज्बात हैं माँ।
पढ़ लेती हैं अक्सर वो
मेरी मुस्कान में छिपे गम को,
रखती हैं ध्यान वो
मेरी आँखें कभी नम ना हो।
मेरे सपनों की खातिर
वो दुनिया से लड़ जाती हैं,
अपनी खुशियाँ छोड़कर
मेरे ख्वाबों की दुनिया सजाती हैं।
मालूम हैं मुझको अकेली हूं
ये सोचकर तुम घबराती हो...
डरना नहीं है मुझको
फिर मुझे तुम सिखाती हो..
ना जाने इतनी हिम्मत
माँ तुम कहाँ से लाती हो?
रूठती हूं जब कभी
मुझको तुम मनाती हो,
मेरे खातिर तुम भी कभी
बच्चों सी बन जाती हो।
प्यार बहुत हैं तुझसे माँ
पर कभी कह नहीं पाती हूं,
दूर तुझसे एक पल भी
रह नहीं पाती हूं।
