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amit Rajput

Abstract

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amit Rajput

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प्रेम से बढ़कर कुछ नहीं

प्रेम से बढ़कर कुछ नहीं

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प्रेम एक तपस्या है समर्पण है और

इसके बिना कोई नहीं दूजा है !

ईर्ष्या द्वेष प्रतिस्पर्धा मन से त्याग दो

क्योंकि सबसे बड़ी यही पूजा है !


प्रेम से मिलते ब्रह्मा विष्णु महेश हैं !

प्रेम से ही मिटता मन का द्वेष है !

त्याग परोपकार की

भावना प्रेम सिखाता है !


खुशहाल वह व्यक्ति रहता है

जो प्रेम अपनाता है !

प्रेम त्याग समर्पण से ही

चलता जीवन संसार है !


ईश्वर ने ही बनाया है प्रेम को

इसकी महिमा अपरंपार है !


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