प्रेम से बढ़कर कुछ नहीं
प्रेम से बढ़कर कुछ नहीं
प्रेम एक तपस्या है समर्पण है और
इसके बिना कोई नहीं दूजा है !
ईर्ष्या द्वेष प्रतिस्पर्धा मन से त्याग दो
क्योंकि सबसे बड़ी यही पूजा है !
प्रेम से मिलते ब्रह्मा विष्णु महेश हैं !
प्रेम से ही मिटता मन का द्वेष है !
त्याग परोपकार की
भावना प्रेम सिखाता है !
खुशहाल वह व्यक्ति रहता है
जो प्रेम अपनाता है !
प्रेम त्याग समर्पण से ही
चलता जीवन संसार है !
ईश्वर ने ही बनाया है प्रेम को
इसकी महिमा अपरंपार है !
