बचपन वाली होली फिर से मनाते है
बचपन वाली होली फिर से मनाते है
आइए पुरानी वाली रीत फिर से अपनाते हैं!
वह बचपन वाली होली फिर से मनाते हैं!
जहां मन में ना किसी के प्रति ईर्ष्या द्वेष था बस प्यार ही प्यार बरसता था!
उस नटखट से बचपन की प्यार से भरी पिचकारी! एक दूसरे पर चलाते हैं!
वह बचपन वाली होली फिर से मनाते हैं!
ना आपस में जात पात धर्म भाव का भेद था! ना ही अमीर-गरीब होने का अहसास!
मां के हाथ से बनी वह प्यार भरी गुजिया सब को खिलाते हैं!
वह बचपन वाली होली फिर से बनाते हैं!
जहां ना मन में अहंकार था ना बड़े होने का घमंड!
एक दूसरे के प्रति समर्पण भाव बिखरता था!
यह संदेश जग जग में फैलाते हैं!
वह बचपन वाली होली फिर से मनाते हैं!
