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AJAY KUMAR

Abstract

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AJAY KUMAR

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प्रेम भूलने लगा हूँ

प्रेम भूलने लगा हूँ

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मैं प्रेम लिखना भूलने लगा हूँ,

किसी को चाहना भूलने लगा हूँ,

है याद नही आखिरी प्रेम का मंजर मुझे,

मैं खुद को ख़ंजर सा चुभने लगा हूँ,

मैं प्रेम लिखना भूलने लगा हूँ ।।


मेरे लिए प्रेम तुम थी,

तुम्हारी आगोश में सोना प्रेम था,

तुम्हारे माथे पर एक बोसा रख देना प्रेम था,

प्रेम था तुम संग बिस्तर को सिलवटें उपहार करना,

प्रेम था तेरे संगेमरमर से बदन पर अपने काले रंग के छीटें बिखेर देना,

प्रेम था तुम्हारी जुल्फों में उलझना,

प्रेम था तुमसे लड़ना,

झगड़ना,

और फिर तुम्हारी ही बांहो में रोना,

प्रेम था तुम्हारा मां को मां कहना,

प्रेम था तुम्हारा हर दिन मुझसे लिपटना,

प्रेम था तुम संग होने को जमाने में दिखाना,

प्रेम था तुम्हारे बचपन की कहानियों में तुम्हें सोचना,


पर अब मैं प्रेम लिखना भूलने लगा हूँ,

मैं प्रेम करना भूलने लगा हूँ,

मैं कभी पूजा था ईश्वर को तेरी खातिर,

अब मैं उसे भी पत्थर मानने लगा हूँ,

तुम्हें पता है,

मैं प्रेम लिखना भूलने लगा हूँ ।।


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