Dharamprakash Pandey

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3.7  

Dharamprakash Pandey

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फरिश्तों की कहानी

फरिश्तों की कहानी

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हे इश्वर ! 

कैसे करु मै तेरा शुक्रिया                    

जो सारे फरिश्तो को तुमने मेरे दामन मे भर दिया,      

हर सकस का जिकर करना तो नहीं है संभव पर चेष्टा रहेगी की ऊल्लेख कर पाऊँ हर खास अनुभव. 

हुनर भी क्या खूब दिया है तूने उसे लाठी लिए भागती हमारे पीछे 

और अगर हम मुश्किल मे पड़ जाते, ढाल बन वो आती सबसे आगे। 

नखरे झेलेती, झेल ती वह हमारी सारी सैतानिया मुस्कुरा कर छिपा लेती अपनी हर परेसानिया 

रचना है येः तेरी सर्वश्रेष्ठ, जो दिया तूने मुझ मां ये विशेष

दुनिया को भले ही तूने बनाया मगर इस सकस मुझे उसमे जीना सिखाया 

जरा सी चोट पर जाने कितने फरियाद करते है हम मगर हँसते मुस्कुराते सह लेते येः सारे गम

मांग कर भले ही मै भूल जाती पर सारी चीज नियमित मेरे पास पहुँच जाते 

बताने से पूर्व हो जाता जिन्हें मेरे दर्दो का एहसास पापा हैं वो मेरे सबसे खास। 

कुछ ऐसी पंखुड़िया भी तूने मुझे दी थाली जिससे छीन मस्ती मैंने की, कोई रूठे तो वह उसे मनाती       

कभी कभी तो और सताती 

माँ की लाडली है ये सबसे नखरे बाजों मुझे सताते देख देती माँ को आवाज         

मगर चाहे कितनी भी हो शरारती

दीदीया कह कर मुझे पुकारती सबसे बड़ी है य एक नमूना                   

मगर है मेरी प्यारी बहना

यह है मेरा छोटा सा परिवार जिसमे बसा है मेरे खुशियो का संसार। 



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