पहला इश्क़
पहला इश्क़
पहली बार मिली तो
कुछ ख़ास ना हुआ एहसास
लेकिन बेचैनी हुई उसके
दोबारा दीदार की
दूसरी बार मिली तो
बढ़ी बेचैनी और ज़रा-सी
बेताबी भी
तीसरी बार मिली तो
जाना आशिकों के
पागलपन को भी
चौथी मुलाकात में
नज़र भर जो देखा उसने
तो हारा दिल भी अपना पहली बार
तब जाना क्यों है दर्जा ऊंचा मोहब्बत का
"उनके" दीदार का सिलसिला बढ़ा
तो साथ ही बढ़ी बेचैनी और ज़रा-सी बेताबी भी
जारी है ये सिलसिला अभी भी
लगता है आशिकों के पागलपन में मैं भी हूं शुमार कहीं,
क्योंकि नही छोड़ती पीछा अब ये बेचनी और बेताबी मेरा कहीं
सुना है कोई दवा नहीं इस मर्ज की बाज़ार में कहीं
"उनके" दीदार से मर्ज को पड़ता आराम ज़रा
पर उनसे दूरी अंदर ही अंदर लेती है जान मेरी
ए-खुदा बता इस मर्ज का इलाज कोई
कर कोई दवा इस पागलपन की
नहीं तो ले जायेगा ये "पहला इश्क़" एक दिन जान मेरी
वो पहली सी मुलाकात की स्मृतियां ले लेगी एक दिन
जान मेरी।

