फिसल जाएगा कभी तो..
फिसल जाएगा कभी तो..
फिसल जाएगा कभी तो,
ऐसे ही थोड़ी न वक्त "रेत" कहलाता है?!
नसीब होगी मंज़िल कभी तो,
ऐसे ही थोड़ी न राही "मुसाफ़िर" कहलाता है?!
आख़िर ज़ुल्म उठाएगी कब तक?
ऐसे ही थोड़ी न ज़िंदगी "मेहमान" कहलाती है?!
होगी मुकम्मल कभी तो,
ऐसे ही थोड़ी न ख्वाहिशें "आसमान" बन जाती हैं?!
