फिर कैसे कहूं पराई तूं
फिर कैसे कहूं पराई तूं
तुम अंश हमारे धड़कन की
निज लहू से तुझको सींचा है।
तुझसे मैं हूँ और,
मुझसे तूम ।
फिर कैसे कहूँ पराई तूम।
तेरे बचपन के कलरव से,
घर आँगन ये गुलजार हुआ।
मैं पूर्ण हुई"संपूर्ण"हुई
" मां"का ओहदा जो दिलाई तूम ।
एक रूप जहां में लाई हूँ
मेरा ही नाम है पाई तू
फिर कैसे कहूं पराई तूम ।
तेरे इन कोमल हाथों को
इतना सुदृढ़ banaungi ।
जो थाम सके पतबाड़ों को,
तूफ़ान से लड़ना सिखाऊँगी ।
निर्माण करो नूतन समाज
घर-आँगनको महकाना तुम।
मेरा मान और अभिमान बनो
माँ के गौरव को बढ़ाना तुम
मैं कैसे कहूँ पराई तूम ।
ये तो बस जग की रीति है।
इस धर से उस धर जाना है।
दोनों धर में समता रख के
तुझे अपना जहाँ बनाना है।
हर घर की तूम ही है लक्ष्मी,
इसे धन्य है करने आई तूम ।
फिर कैसे कहूं पराई तूम ।
फिर कैसे कहूं पराई तूम ।।
