फिर भी मैं पराई हूँ
फिर भी मैं पराई हूँ
प्रकृति स्वरुपा,
असल अन्नपूर्णा,
हँसी का खजाना,
सुकून की पुड़िया,
आनंद का सागर,
दुख की गलियाँ,
आँखों की ठंढक,
प्रीत का अहसास,
बाबुल की रौनक,
ससुराल की शान,
क्या क्या नहीं हूँ मैं?
सबका सहारा,
सबकी रखवार,
बहती रहती,
बिन पतवार,
माँ कहती है,
पराई होती बेटियाँ।
सासू जी कहती हैं,
पराये घर से आई,
आखिर बेघर ही,
जनमती और,
मरती है बेटी।
क्यों पराई ,
होती है बेटियाँ
क्यों सताई होती है
बेटियाँ।
