श्राद्ध
श्राद्ध
जीवन धन को
कभी रुलाया,
कभी हँसाया।
ढीली पड़ गयी
रिश्ते का गाँठ,
दिन गुजरे बस
मन को मार।
आज जब वो
कहा विदा तो
रोते क्यों हो
तुम बुक्का फाड़।
पानी -पानी रटते
वो गया स्वर्ग सिधार,
तब देखो हो रहा
आज गंगाजल बौछार।
रोटी सूखी दिया नहीं
औ करे भोज विधान,
सच पुछो तो ये
लोक परंपराये
अब हो अमान्य
वरना ऐ मानव
तू कहलायेगा
नादान।