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पहचान

पहचान

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जिन्दगी तो चल ही रही थी

पर दिल के किसी कोने में

एक कमी भी खल रही थी।

तभी आवाज कहीं से आई

थोड़ी सी लड़खड़ाई

जैसे बंद पिंजरे से बाहर

आने को मचल रही थी।

काले बालों बीच झांकती सफेदी

चेहरे पे झूर्रियां थी

पर हुबहु मुझसी ही दिख रही थी।

चाह रही थी वो कुछ कहना

हमारे बीच था एक आइना

तोड़ के दीवार सभी वो

मुझसे मिल रही थी।

जिन्दगी के उतार- चढ़ाव को पार कर

आज पहुंच गई हूं इस मोड़ पर

अब तो वो ही करूं जो

वो करना चाह रही थी।

दब गई थी जिन उसुलों के बीच

आज बढ़ने लगी अपने को सींच

थोड़ी सी मनमानी करके

जिंदगी खिल रही थी।

अफसोस नहीं गुजर गए जो पल

नया सवेरा निकलेगा कल

लगने लगी है आसान

जो मुश्किल लग रही थी।

बढ़ाएं जो चार कदम मैंने

देखें थे कभी जो सपने

दूरियां दरमियां उनके

अब घटने लगी थी।

है छुपा है सब के अन्दर

बदल सकता जो हमारा मुकद्दर

रोको नहीं बस बढ़ने दो उसे

जो बढ़ना चाह रही थी।।

बनाएं अपने को इस काबिल

करें, जो चाहे करना हासिल

मोड़ दे पतझड़ भी अपना रुख

जो इधर आना चाह रही थी।।

#positiveindia


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