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Rajesh Narayan Ray

Abstract

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Rajesh Narayan Ray

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फागुन

फागुन

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फागुन की चली बयार,

मस्ती में झूमा संसार,

भंवरे भी करते गुंजार,

बागों में छाई बहार।


वन में खिल गए पलाश,

है कैसा अद्भुत अहसास,

हो जैसे जंगल की आग,

गांवों में अब गूंजे फाग।


मदहोशी छाई चहुंओर,

सुनो मंजीरे का ये शोर,

हवा में जैसे घुली हो भंग,

मन में उठती मृदुल तरंग।


बरसे रंग और उड़े गुलाल,

ढोलक बजे बजे करताल,

फागुन में झूमे तन मन,

जग को मिले नया जीवन।


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