उम्र
उम्र
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बचपन में मां कहती थी,
अभी तुम्हारी उम्र,
खेलने और खाने की है।
थोड़ा बड़ा हुआ तो,
गुरुजनों ने कहा -
अभी तुम्हारी उम्र,
पढ़ने की है।
आई जवानी तो,
दोस्तों ने समझाया -
ये उम्र तो मौज उड़ने की है।
मौज उड़ाते न जाने कब
आन पड़ी कंधों पे जिम्मेदारी,
जिसके बोझ तले
झुक गए कंधे,
पके बाल
आने लगी झुर्रियां,
पता ही न चला
कि कब बुढ़ापे की
उम्र आन पड़ी।
टिमटिमाता दिया
अब बुझने की कगार पर है।