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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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पौत्र

पौत्र

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पुत्र का पुत्र पौत्र

जिसमें दिखे दादा को

अपना बचपन।

एक अजीब सी मस्ती

छा जाती है दादा के चेहरे पर,

दादा का दर्द जैसे

काफी कम हो जाता है उस पल

जब पौत्र होता दादा के संग।


पौत्र को भी मिल जाती है जैसे

हुड़दंग की आजादी,

मम्मी पापा का डर नहीं होता

दादा की छत्रछाया में

भला डांटने मारने का हौसला किसे होता।


हर जिद दादा से पूरी होती

पौत्र दादा के जीवन की

सांध्य बेला में लाठी होती।

जीवन खुशहाली से बीत जाता

बड़ा सौभाग्य समझता है वो दादा

जो पौत्र के कंधे पर श्मशान जाता।


दादा और पौत्र का होता ऐसा नाता

उम्र का लंबा फासला भले होता

मगर इनके बीच होता है गहरा नाता। 


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