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पानी पानी

पानी पानी

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पानी पानी शोर मचा और कितनी चीखें डूब गईं...
पहले कुछ आवाज़ें उभरीं, बाद में सांसें डूब गईं...


कौन सधाए बिफरा पानी, कौन पसारे मिट्टी....
नदी की मुश्कें बांधने वाली रस्सी डोरी डूब गईं....

पानी का दानव उछलकर नाग नस तक आ पहुंचा....
बच्चे जिस पर बैठे थे उस पेड़ की शाखें डूब गईं....

पत्थर तोड़ने वाले हाथों में बच्चों की लाशें थीं....
शहर को जाने वाली सारी टूटी सड़कें डूब गईं......

बर्बादी पर मातम करने की मोहलत भी पास नहीं....
आंसू बहने से पहले ही आंख की पुतली डूब गई...

बस्ती में कोहराम मचा था, आदम रोजी मांग रहा था.....
"राज़क, राज़क" कहते कहते सबकी नब्ज़ें डूब गईं....

जग की ऊँच नीच ने "शांतनु" पानी का रुख मोड़ दिया .....
तेरी मिल तो वहीं खड़ी है, मेरी फसलें डूब गई.....


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