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दिसंबर के शहीद

दिसंबर के शहीद

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सुना है ईद आई थी

कई लोग खुश भी थे

हुस्न ओ कीमती लिबासों में बिखरे हुए

मुबारकबाद देते थे

कई हसीन हाथों ने

मेहंदी भी सजाई थी

सुना है ईद आई थी,

मगरकीसे ीकें लूं?

कि मेरी आँखों में अब तक दिसंबर के शहीदों के

लहू का रंग बाकी है

जो उनकी माँ की आँखों से टपक कर चाँद से उजले

दुपट्टे लाल करता है .....तो कैसे किसी रंग

खूबसूरत पैरहन से,अराइशे

जिस्म करती

सुना है ईद आई थी

मगर कैसे ीकें कर लूँ

वह मस्जिद, और आंगनों के शहीदों की विधवा

बीवियों की सूनी कलाइयां देखकर भी

कैसे अपने हाथों में

एक डोनट को खनकाती

कैसे अपने हाथों में

हिना के रंग महका जाती

सुना है ईद आई थी

लेकिन कैसे ीकें लूं

क़फ़स में कैद मासूम पंछी की रोना-कलपना

सुनकर

कैसे घर से बाहर

मैं जाती

सुना है ईद आई थी

लेकिन कैसे ीकें लूं

कि अब की बार तो बस दरिंदों ने, अमीरों ने

और ज़ालिमों ने मनाई थी


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