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डॉ किरण मिश्रा

Romance

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डॉ किरण मिश्रा

Romance

नज़्मों के बादल

नज़्मों के बादल

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हवाएँ बदली-बदली हैं ये मौसम बहका-बहका है

मैंने सिर्फ़ मुहब्बत की तो फिर ये जादू कैसा है।


नज़्मों के बादल घिरे थे कुछ ग़ज़लें भी बरसी थीं,

मेरी कच्ची धरती से उठी भाप में चन्दन महका है।


उस रात चाँद से तुमने क्या कह दिया बता देना,

आजकल मुझसे जाने क्यूँ वो उखड़ा-उखड़ा रहता है।

 

तुम्हें जब याद करती हूँ तो होंठ मुस्काने लगते हैं,

ये दुनिया वाले कहते हैं मुझे शायद कुछ हुआ-सा है।


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