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नमन तुम्हें, ए देश के सिपाही

नमन तुम्हें, ए देश के सिपाही

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जब हर शाम चाँद निकलता है,

तारों की बारात लिए धरती पर उतरता है।


जब सुनसान होते हैं शहर, गाँव सारे,

लोग सब होते हैं नींद के मारे।


तब कहीं मिलों दूर सरहद पर कोई जागे रहता है,

सर्दी और गर्मी की जो परवाह नहीं करता है।


अपना घर-परिवार छोड़ कर है वो दूर बड़ा,

उसके सिर पर देशप्रेम की जुनून है चढ़ा।


देशवासियों के खातिर किया खुद को अर्पण,

बिना कोई उम्मीद के, किया तन मन का समर्पण।


कंधों पर जिम्मेदारी लिए

डटकर खड़ा है देश का रखवाला,

सिपाही है वो, और है बडा हिम्मतवाला।


उसके वर्दी का मोल न कोई

उसके त्याग का उधार चुकाएं कैसे,

बस उसको करते हैं नमन हम,

अपने दिल की गहराईयों से।


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