नारी
नारी
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तेरी मुस्कुराहट जो उस रात
दब गई तेरे चीखों में।
शरीर के साथ साथ कई दाग
रह गये नासूर सा तेरे हृदय में।
न सुना किसी ने तेरी सिसकियाँ,
जो चढती रात के संग बढती गई।
किसी ने उफ तक न किया,
और तु अकेली हर पल सहती गई।
पर तुने सारे दुःख दर्द दफनाया
अपने छाती तले,
जैसे आग में बनकर
पतंग सा जले।
नीलकंठ सा पान किया
तुने हर क्लेश का ज़हर,
क्योंकि तु नारी है
सह लेती है कोई भी कहर।
पर कोई यह न समझा
के तु है नहीं कोई सामग्री
जो आती है लेकर तिथि समाप्ति की,
नहीं है तु कोई वस्तु
जो मौका दे
खुद को उपयोग कर फेंकने की।
ए नारी,
तु है सशक्त
है तु जगतजननी
देती है तु जीवन एक नई,
सारे विचारधाराओं से परे
है तेरा स्थान
दुनिया के कोई भी नजरबंदी में नहीं।
