तुम्हारे-मेरे बीच की दास्तान
तुम्हारे-मेरे बीच की दास्तान
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शायद तुम्हारे मेरे बीच की दीवार
कमजोर पड गई है
तुम उधर आह भी करो
तो इधर मेरे शरीर से रूह निकल जाती है।
बूंद बूंद मेरे आँसु का टपकना
वहां तुम्हारे दिल पे आए
बाढ़ को दिखाती है।
तुम्हारे मुस्कान से तो
आज भी रोशन है मेरा घर,
तुम्हारी नाराज़गी से
यहाँ अमावस भी पहले जैसा ही है।
फिर भी कुछ कमी
आज भी वैसी ही है तुम्हारे-मेरे रिश्ते में,
जो हमारे बीच सौ दीवार मिटाकर भी
बस एक तार जोड़ नहीं पाती है।
शायद तुम्हारे मेरे बीच का समय ही
कभी न आने वाले कल में तबदील हो गया है।
