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JAY PANDEY

Abstract

4  

JAY PANDEY

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नीति के छंद

नीति के छंद

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580


लेखन ऐसा कीजिए, दे समाज को सीख

पाठक पढ़कर लेख को, बन जाये निर्भीक।


लक्ष्य दृष्टिगत हो सदा, कर्म करो दिन-रात

मन में हो विश्वास दृढ़, होगा नया प्रभात।


खुद को तूँ पहचान कर, साध लक्ष्य पर तीर

शर भेदेगा लक्ष्य को, मत हो तनिक अधीर।


प्रेम भावना मन बसे,तो सब दिखते मीत

प्रेमी मन के अस्त्र से,रे मानव जग जीत।


हे मानव निज समय को, क्यों करता है व्यर्थ

स्वर्णिम पल यदि खो गया,होगा बहुत अनर्थ।


उठकर ब्रह्ममुहूर्त में और करे नित ध्यान

सात्विक भोजन हो सदा, स्वस्थ वही इंसान।


मानव तो अंधा हुआ, करता है अभिमान

गीत प्रणय का भूलकर, बन बैठा नादान।


करते हैं गुणगान सब, देख दिखावा ज्ञान

जो है सच का सारथी, सच में वही महान।


कथनी, करनी एक हो, तो बन जाये बात

भाव सदा मंगल रहे, मंगल हो दिन-रात।

       

लेखन ऐसा कीजिए, दे समाज को सीख

पाठक पढ़कर लेख को, बन जाये निर्भीक।

बन जाये निर्भीक, लक्ष्य हो हर पल मन में

हो अतुलित सामर्थ्य, जोश हो अतुलित तन में।

कह शंकर कविराय, भरे उत्साह सभी मन

करके उचित विचार, करो तुम ऐसा लेखन।


मानव तो अंधा हुआ, करता है अभिमान

गीत प्रणय का भूलकर, बन बैठा नादान।

बन बैठा नादान, लोभ ने ऐसा घेरा

हुआ विकट अभिमान, करे नित मेरा-मेरा।

कह शंकर कविराय, न बन हे नर तू दानव

करले तनिक विचार, जन्म से है तू मानव।


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