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Bijendra Hansda

Abstract

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Bijendra Hansda

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नहीं सकूंगा

नहीं सकूंगा

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नहीं सकूंगा अर्थात्, मन को स्थिर करते हो,

क्यों नहीं सकोगे, कोशिश तो कर।


नहीं सकोगे एक बार, देखो हर बार,

औरों को देखो, वे कैसे बढ़ते चले?


हवा से टूटते फिर बनाते, हजार बार करते कोशिश,

आपके भी तो है दो पैर, हाथ, आंख।


ख़ाली मन के डर से, समय नष्ट करते हो, 

लगे रहो डटे रहो शर्म डर क्यों?


बिजेन्द्र हाँसदा

                       



                 


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