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Phool Chandra Vishwakarma

Tragedy Inspirational

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Phool Chandra Vishwakarma

Tragedy Inspirational

नेत्र ज्योति

नेत्र ज्योति

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नेत्र ज्योति बिन सब जग सूना, अँधियारा जीवन में। 

जग स्वरूप कुछ समझ न आए, क्या धरती क्या घन में।। 


जिन आँखों से ज्योति नहीं, उनका तो संसार अधूरा। 

सूरदास बनकर जीते हैं, जीवन का आधार अधूरा।।

 

कष्ट महा जीवन यापन में, जन्मदात्री भी रोए। 

उर में उठती यही विवशता, ऐसी संतति को क्यों ढोए।। 


दीन भाव बचपन से जगता, कौन बनेगा उनकी लाठी। 

कौन चलाएगा घर बाहर, कौन बने घोड़े की काठी।।


कोई बालक सूरदास बन जन्म मरण तर जाता है। 

माखनचोर कन्हैया के बाल रूप छवि गाता है।। 


मैंने भीख माँगते देखे गली और चौराहों पर। 

बहुत भटकने वाले देखे, कच्ची पक्की राहों पर।। 


श्वेत छड़ी और काला चश्मा, देख लोग हट जाते हैं। 

सहानुभूति के शब्द बोलकर, करुण भाव मन लाते हैं।। 


आज बने विद्यालय जिसने भाग्य सँवारा है इनका। 

और नेत्र के शल्य चिकित्सक, प्राण उबारा है इनका।। 


सभी नहीं हैं एक सरीखे, अब भी कुछ दुर्दिन सहते।

उनकी संरक्षा करनी है, जो अब भी असहाय रहते।।


 हर अपंगता से बढ़कर है, नेत्र हीनता दुखकारी। 

उसके बिन हरियाली दुनिया, लगती हैं अँधियारी।। 


नेत्र ज्योति मत छीनो ईश्वर, चाहे जैसा संकट देना। 

नहीं कोई शारीरिक अक्षमता,धन वैभव मत देना।। 


नेत्र ज्योति के बिना किसी भी, प्राणी का होता निजत्व। 

नेत्र नेत्र के मिलने से ही, उनमें बढ़ता है अपनत्व।। 


नेत्र दान है महादान, इससे लोगों को मिलती ज्योति। 

अगर हो सके तो देनी है, नेत्र हीन को नेत्र की ज्योति।। 


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