नात ए मुबारक
नात ए मुबारक
कौ़म बांटी गई बख़्त बांटे गए
फिर अमीरों में ताजो तख़्त बांटे गए
ये सियासत अमां कितनी मजबूर हैं
चिड़ियों से दुश्मनी में दरख़्त काटे गए
एक अंधा की वजह से चुकी हिर्स में
कितनी मांओं के लाल ओ लख़्त काटे गए
खु़द को शाबाशियां फिर हुकूमत ने दीं
कितने लम्हे ग़रीबों में सख़्त काटे गए
शाह ग़मगीन है फलसफे़ मिट चुके
ज़िन्दगी की तरह वक़्त काटे गए।