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MANSI SINGH

Abstract

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MANSI SINGH

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नारी

नारी

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सूर्य की तेज किरण में

घने पीपल का छाव हो तुम, 

कभी ज्वाला, तो कभी चन्दन 

हे नारी सभी रूप मे तेरा अभिनन्दन


कभी झरने की तेज धारा 

तो कभी सांत नदी का नीर हो तुम

कभी गौरी, कभी शैलपुत्री तो 

कभी काली कालरात्रि का रुप हो तुम। 


कभी ममता की देवी,

कभी स्नेह का आंचल हो तुम। 

कभी क्रोध कि चिंगारी, 

तो कभी त्याग,

बलिदान का दुसरा नाम हो तुम। 


करुणा भाव का प्रतीक बन

परिवार को बांध रखने वाली डोर हो तुम, 

माँ, बहन, पत्नी, बेटी के रुप

बन जीवन का आधार हो तुम, 

हे नारी ईश्वर का वरदान हो तुम।


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