ना कोई अपना...!
ना कोई अपना...!
बहुत ही अकेलापन,
बहुत ही अकेलापन सा छा गया है !
ना कोई अपना है और ना किसी से अपने होने की उम्मीद है !
हा, आस पास तो बहुत ही भीड़ है,
आस पास तो बहुत ही भीड़ है लेकिन दिल मे उदासी सी छाई है।
ना कोई अपना है और ना किसी से अपने होने की उम्मीद है !
माना उपर से सब समझदारी दिखा रहे है,
माना उपर से सब समझदारी दिखा रहे है
लेकिन दिल का हाल समझे ऐसा कोई नहीं है !
ना कोई अपना है और ना किसी से अपने होने की उम्मीद है !
देख लिया यंहा हर रिश्ता निभाकर,
देख लिया यंहा हर रिश्ते मे रहकर यंहा स्वार्थ सबको अपना है !
ना कोई अपना है और ना किसी से अपने होने की उम्मीद है !
क्या करूं मे ऐसे अपनो
का,
क्या करूं मे ऐसे अपनो का जहां उनके लिए ही धूट - धूट कर जीना पडे !
ना कोई अपना है और ना किसी से अपने होने की उम्मीद है !
जीने जीतना चाहा,
जीने जीतना चाहा हंमेशा उसे ही खुद से दुर पाया !
ना कोई अपना है और ना किसी से अपने होने की उम्मीद है !
अब तो बस इस साये से,
अब तो बस इस साये से भी डर सा लग रहा है
कहीं ये भी अब मुझे कमजोर बना रहा है !
ना कोई अपना है और ना किसी से अपने होने की उम्मीद है !
हंमेशा हसते हुए चहेरे,
हंमेशा हसते हुए चहेरे के पीछे मुस्कराहट हो जरूरी नहीं
उस हसते चहेरे के पीछे के आंसू तो सिर्फ वही जानता है।
ना कोई अपना है और ना किसी से अपने होने की उम्मीद है !