न हारे हैं ,न हारेंगे
न हारे हैं ,न हारेंगे
हम तो संसंघर्ष के सिपाही हैं
ना हार की फिक्र करते हैं
न जीत का जिक्र करते हैं
हम तो मंज़िल पाने के लिए
रास्ता खुद बनाते हैं
अब मुश्किलें क्या उखारेंगी
हमे तो पत्थर तोड़ने की आदत
हो गयी हैं
मेरी क़ाबलियत
पर शक नहीं करता
वक़्त का कोई मुक़ाबला नहीं
हम तो बहाने छोड़
समाधान निकालते हैंं
अभी तो हमने चलने
का इरादा किया है
ना पूछ हमसे किनारा कहाँ है
कल से ज्यादा कुछ करना है
मजबूत होंसले की बाहें फैलाकर
अंगारों पे चल गुजरना है
वाकिफ़ हूँ मैं जिंदगी के झोल से
चूल्हे पे जलना मुझे आता हैं!