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Kunal Narayan Uniyal

Inspirational Others

4.3  

Kunal Narayan Uniyal

Inspirational Others

न बन अनार

न बन अनार

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खुद में बारूद समेटे

है दंभ से भरा

कर सीना चौड़ा

कभी न मस्तक धरा

बस सोच रहा, एक मैं ही हूँ काबिल

करता हूँ जग के अंधियारे से जुदा

मेरी विधा से प्रेरित सब जान

है मुझ से चमत्कृत दुनिया उनकी

जैसे ही हुआ अग्नि से मिलन

फुट पड़ा दम्भित सीना


सबकी वाह वाही में डूब, कुछ पल खूब रहा

फिर धीरे धीरे मंद पड़ता गया, धीमे धीमे सोता गया

नींद जगी तो पाया कूड़े की जद में ,

अकेले सहमा बैठा अनार

कितने दम्भ में था जीता रहा

खोखला दिल आज यही कराहता

बस एक दिन की माया थी

एक दिन का खेल रचा

होना ही है माटी में समाहित

क्यों लगाए ख़्वाबों का मेला


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