मुस्कुराते रहो
मुस्कुराते रहो
समय चल रहा है, उम्र ढल रही है
गमों में न बिताओ जिंदगी
हंसते रहो मुुस्कुराते रहो
खुशियों के फूल खिलाते रहो
दिन के सूरज न बनो
न बनो रात के चंद्रमा
जिस घर के चिराग हो
उस घर में सदा झिलमिलाते रहो
न बैठे रहो इस आस में
कि चमन में बहारें आएंगी
बनकर खुद खुशबू का झोंका
पल-पल को महकाते रहो
जीवन ये कुछ भी नहीं
संगीत के बिना
वक़्त का ताल हो कैसा भी
अपनी लय में गुनगुनाते रहो
सावन के रिमझिम फुहारों की
जरूरत न रहे
बन जाओ बादल घनेरे
प्रेमरस बरसाते रहो
ज़िन्दगी की राहों में
अंधेरे का क्यूं बसेरा हो
खुद ही बन जाओ रवि
रोशनी बिखराते रहो
जीवन इक गुलदस्ता है
सच है यही'कल्पना'
रंग-बिरंगे फूलों से
इसको सदा सजाते रहो।