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Namrata Goyal

Abstract

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Namrata Goyal

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मुसाफिर

मुसाफिर

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इस ज़िन्दगी के सफर में

तू फिक़्र न कर, ए मुसाफिर,

दूसरों की खता का ज़ख्म लेने के लिए

खुद को न कर हाज़िर।


गहरी चोट देकर कुछ ही पल में

भूल जाएंगे ये क़ाफ़िर ,

कब तक तू अपनी रुह को

करता रहेगा घायल

फिर फिर ओ मुसाफिर।


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