मुसाफिर
मुसाफिर


इस ज़िन्दगी के सफर में
तू फिक़्र न कर, ए मुसाफिर,
दूसरों की खता का ज़ख्म लेने के लिए
खुद को न कर हाज़िर।
गहरी चोट देकर कुछ ही पल में
भूल जाएंगे ये क़ाफ़िर ,
कब तक तू अपनी रुह को
करता रहेगा घायल
फिर फिर ओ मुसाफिर।
इस ज़िन्दगी के सफर में
तू फिक़्र न कर, ए मुसाफिर,
दूसरों की खता का ज़ख्म लेने के लिए
खुद को न कर हाज़िर।
गहरी चोट देकर कुछ ही पल में
भूल जाएंगे ये क़ाफ़िर ,
कब तक तू अपनी रुह को
करता रहेगा घायल
फिर फिर ओ मुसाफिर।