ज़िन्दगी : एक पहेली सी
ज़िन्दगी : एक पहेली सी

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50 साल की उमर वाली नींद सी ,
हो गई है आजकल मेरी ज़िन्दगी ,
क्या कहूँ, कैसे कहूँ, कैसी है,
आजकल मेरी ज़िन्दगी।
नौ बजे बिन दवा के उबासी आने
की खुशी सी, कभी है ज़िन्दगी,
आधी रात गहरी नींद में पसीने
में भरी, डरी सी कभी है ज़िन्दगी।
अधूरे सपनों में अपने बच्चों के
बचपन की अधूरी यादों की तरह,
ललचाती है कभी ज़िन्दगी,
नींद में कहीं दूर से आती उनके
हँसने की आवाज़ सी, सकून
देती है कभी ज़िन्दगी।
सुबह जल्द आँख खुल जाने पर
बरकरार थकावट सी, बोझल है
कभी ज़िन्दगी ,
दोबारा नींद कैसे आए क्या करूँ
उपाय, बेबस सी है कभी ज़िन्दगी।
ज़िम्मेदारियों का जमा घटा करते
आँखों से रात भर दूर हुई नींद,
हिसाब सी है कभी ज़िन्दगी,
कल सुकून से नीयत भर कर
क्या होगी मेरी नींद पूरी, एक
पहेली सी है आजकल मेरी ज़िन्दगी।