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Deepak Kumar

Abstract

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Deepak Kumar

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मुक्ति

मुक्ति

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स्वयं से मिलने की यात्रा

मुक्ति की यात्रा है !

मैं मुक्त होना चाहता हूं

किन्तु 

तुम्हें भूलना नहीं चाहता


याद है तुम्हें ?

तुम मुझे यात्री कहकर

पुकारती थी

मैं जानता हूं अब यात्री

होने का मतलब !


कल मिला था

एक

बौद्ध भिक्षु

उसने मेरी आत्मा को

कपड़ों से अलग किया


और कहा

तुम्हारी आत्मा पर

प्रेम के छाले हैं !

आत्मा पर घाव लिए

मुक्ति नहीं मिल सकती !


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