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Radhamohan Pujahari

Abstract Tragedy

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Radhamohan Pujahari

Abstract Tragedy

"मुक्ति पथ"

"मुक्ति पथ"

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बहती हुई नदी की धारा में

जीवन रूपी नाव 

किनारे को तलाशते हुए

बढ़ रही है अनंत दिशा की ओर

पता नहीं,

किनारे तक पहुँचना

कहाँ तक संभव है ?

फिर भी तलाश जारी है

मंजिल की ओर पहुँचने की......


पानी से लबालब नदी का 

अस्तित्व ही क्या है ?

वह तो अनन्त सागर की ओर 

बह रही है

बह रही है 

उस अनिश्चित दिशा की ओर

जहाँ न तो किनारा है

और न ही मंजिल !

अपने सारे दुःख-दर्द को समेटे हुए

ढूँढ रही है

सीमाहीन सागर का विशाल हृदय......


नदी को नाव की परवाह नहीं

नाव विचारी निःसहाय 

लड़खड़ा रही है

नदी की धारा में

डर है किनारे तक पहुँचने से पहले ही

कहीं डूब न जाए ?

फिर भी तलाश जारी है

मंजिल की ओर पहुँचने की..........


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