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Shahwaiz Khan

Inspirational

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Shahwaiz Khan

Inspirational

मुक़द्दर का सिंकदर

मुक़द्दर का सिंकदर

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तड़प कर आह भरना कब का छोड़ चुका हूं

मैं जान गया हूं अब इस दर्द के तिलिस्म को

सुनते आये है हम एक उम्र से

आह अर्श को चीर देती है

मगर कुछ दुआएं

शायद वहाँ तलक नही पहुंच पाती

एक ऊँची सी रस्सी पर वो चलती है

जो अपनी जाँ सँभाले

शायद उसे कुदरत नही जानती

किताबों में बंद हैं जो कहानियाँ बनकर

वो क्यूँ जिए क्यूँ मरे

ना वो जानता है

ना वो जानती है

ज़िंदगी को पढ़ने के लिए

तजुर्बे की ऐनके चाहिये

सिर्फ़ भरे प्यालो से कुछ नहीं होगा

प्यास बढ़ाने के लिए

कुछ प्याले ख़ाली चाहिये

चाहिए एक दिल

थोड़ा पत्थर सा

थोड़ा कोमल सा

और थोड़ा थोड़ा सारा ज़र सा

कुछ गहराईया

ख़ामोशियां

तन्हाईया

कुछ उँची बुलंदियां

तब तू जी सकता है

हाँ फिर कुछ कर सकता है

इस दुनियाँ में रहकर

तू खुद एक दुनिया बन जायेगा

वक्त आज तुझको जाने ना जाने

ज़माना तुझको जानेगा

तेरी किस्मत तेरा मुक़द्दर

तेरा नाम पता लेकर दूंढता तेरे पास आयेगा

हँस मेरी जाँ हँस एक दिन तू

मुक़द्दर का सिकंदर कहलायेगा!



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