मत बाँटो
मत बाँटो
मत बांटो इस धरती को
अब बहुत बट चुके हैं हम
गर बाँटना ही है तो बाँटो
हम गरीबों के दुखों को तुम
एक से हम दो हुए दो से हुए हम तीन
तुम हमारी हर खुशी अब क्यों रहे हो छीन
क्यों करते हो वादे हजार
क्यों दिलाते हो हमको दिलाषा
इतने वर्षों से अब तक हम
बस देख रहे हैं यही तमाशा
क्यों जाति धर्म के नाम पर
अपनों को अपनों से भिढाते हो
बाद में बैठकर कुर्सी पर हम
जनता को चिढ़ाते हो
मिलता नहीं सस्ता राशन
यहाँ मौत बहुत ही सस्ती है
उन घरों में चूल्हे नहीं जलते
कागजों में जो अच्छी बस्ती है
तुम देश को खाए जाते हो
क्यों मानवता को सताते हो
उजाला करने को अपने घर में
क्यों झोपड़ियां इनकी चलाते हो
अपने ही अपनों के हाथों से
अब बहुत कट चुके हैं हम
मत बांटो इस धरती को
अब बहुत बँट चुके हैं।
