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Mahavir Uttranchali

Inspirational

4.5  

Mahavir Uttranchali

Inspirational

मन में नाचे मोर है (150 जनक छन्द)

मन में नाचे मोर है (150 जनक छन्द)

7 mins
201


१.
जनक छंद की रौशनी
चीर रही है तिमिर को
खिली-खिली ज्यों चाँदनी

•••
२.
भारत का हो ताज तुम
जनक छंद तुमने दिया
हो कविराज अराज तुम

•••
३.
जनक छंद सबसे सहज
तीन पदों का बंद है
मात्रा उनतालिस महज
•••
४.
कविता का आनन्द है
फैला भारतवर्ष में
जनक पूरी का छंद है
•••
५.
सुर-लय-ताल अपार है
जनक छंद के जनक का
कविता पर उपकार है
•••
६.
पूरी हो हर कामना
जनक छंद की साधना
देवी की आराधना
•••
७.
छंदों का अब दौर है
जनक छंद सब ही रचें
यह सबका सिरमौर है
•••
८.
किंचित नहीं विवाद यह
गद्य-पद्य में दौड़ता
जीवन का संवाद यह
•••
९.
ईश्वर की आराधना
शब्दों को लय में किया
कवि की महती साधना
•••
१०.
यूँ कविता का तप करें
डोले आसन देव का
ऋषि-मुनी ज्यों जप करें
•••
११.
तीन पदों का रूप यह
पेड़ों की छाया तले
छाँव 
अरी है धूप यह
•••
१२.
बात हृदय की कह गए
जनक छंद के रूप में
सब दिल थामे रह गए
•••
१३.
उर में यदि संकल्प हो
कालजयी रचना बने
काम भले ही अल्प हो
•••
१४.
सोच-समझ कर यार लिख
अजर-अमर हैं शब्द तो
थामे कलम विचार लिख
•••
१५.
काल कसौटी पर कसे
गीत-ग़ज़ल अच्छे–भले 
'महावीर' तुमने रचे
•••
१६.
रामचरित 'तुलसी' रचे
सारे घटना चक्र को
भावों के तट पर कसे
•••
१७.
जीवन तो इक छंद है
कविता नहीं तुकांत भर
अर्थ युक्त हर बंद है
•••
१८.
कर हिसाब से मित्रता
ज्ञान भरी नदिया बहे
कर किताब से मित्रता
•••
१९.
मीर-असद की शायरी
लगे हमारे सामने
बीते कल की डायरी
•••
२०.
कविता को आला किया
मुक्त निराले छंद ने
हर बंद निराला किया
•••
२१.
बच्चन युग-युग तक जिए
जीवन दर्शन दे रहे
मधुशाला की मय पिए
•••
२२.
'परसाई' के रंग में
चलो सत्य के संग तुम
व्यंजित व्यंग्य तरंग में
•••
२३.
अपने दम पर ही जिया
वीर शिवाजी-सा नहीं
जिसने जो ठाना किया
•••
२४.
काल पराजित हो गया
सावित्री के यतन से
पति फिर जीवित हो गया
•••
२५.
राम कथा की शान वह
है वीर 'महावीर' इक
बजरंगी हनुमान वह
•••
२६.
वेदों का सौरव गिरा
करके सीता का हरण
रावण का गौरव गिरा
•••
२७.
दैत्य अक्ल चकरा गई
व्यर्थ किया सीता हरण
देवी कुल को खा गई
•••
२८.
माया मृग की मोहिनी
हृदय हरण करने लगी
सीता सुध-बुध खो रही
•••
२९.
राजा बलि के दान पर
विष्णु अचम्भित से खड़े
लुट जाऊं ईमान पर
•••
३०.
कहर सभी पर ढा गया
जिद्दी दुर्योधन बना
पूरे कुल को खा गया
•••
३१.
बनी महाभारत नई
घात करें अपने यहाँ
भाई दुर्योधन कई
•••
३२.
गंगा की धारा बहे
धोकर तन की गंदगी
मन क्यों फिर मैला रहे
•••
३३.
लक्ष्मी ठहरी है कहाँ
इनकी किससे मित्रता
आज यहाँ तो कल वहाँ
•••
३४.
बात करो तुम लोकहित
अच्छा-बुरा विचार लो
काज करो परलोक हित
•••
३५.
अपना-अपना हित धरा
किसको कब परवाह थी
गठबंधन अच्छा-बुरा
•••
३६.
राजनीति सबसे बुरी
'महावीर' सब पर चले
ये है दो धारी छुरी
•••
३७.
बनी बुरी गत आपकी
रक्षाकर्मी रात-दिन
सेवा में रत आपकी
•••
३८.
भाषा भले अनेक हैं
दोनों का उत्तर नहीं
उर्दू-हिंदी एक हैं
•••
३९.
हिंदी की बंदी बड़ी
नन्हे-नन्हे पग धरे
दुनिया के आगे खड़ी
•••
४०.
सकल विश्व है देखता
अनेकता में एकता
भारत की सुविशेषता
•••
४१.
भारत का हूँ अंग मैं
मुझको है अभिमान यूँ
मानवता के संग मैं
•••
४२.
भारत ऐसा देश है
मानवता बहती जहाँ
सबको यह सन्देश है
•••
४३.
मस्त उमंगों से भरा
यारो कभी न ख़त्म हो
जीवन रंगों से भरा
•••
४४.
क्या होगा अगला चरण
जाने है भगवान वो
हानि-लाभ, जीवन-मरण
•••
४५.
मन की आँखें खोल तू
सच्चाई पहचान ले
अन्तर्मन से बोल तू
•••
४६.
हर सू ही छाई कमी 
ढूँढे से दिखता नहीं 
एक भला-सा आदमी 
•••
४७. 
सूरज की पहली किरण 
नई राह की खोज में 
जैसे हो चंचल हिरण 
•••
४८. 
हर सुख से है दुःख बड़ा 
दुःख को जब तोला गया 
खुशियों पर भारी पड़ा 
•••
४९. 
जीवन की नैया चली 
तूफ़ानों के बीच भी 
लौ यह मुस्काती जली 
•••
५०. 
बहती है मन्दाकिनी 
महामोक्ष देती हमें 
है सुख-दुःख की वाहिनी 
•••
५१. 
जब तक घट में प्राण हो 
बोल दो सकल विश्व से 
मानव का कल्याण हो 
•••
५२. 
शब्द ज्ञान की खान है 
साहित्य का विकास ही 
मानव का उत्थान है 
•••
५३. 
सजन मिलन को आय ज्यों 
पनघट पे पनहारियाँ 
गगरी छलकत जाय त्यों 
•••
५४. 
तब-तब पुलकित होय मन 
जब-जब उर के कुञ्ज में 
उपजे है सन्तोष धन 
•••
५५. 
गोरी तेरे गाँव में 
स्वर्ग बनी शीतल पवन 
कल्प वृक्ष की छाँव में 
•••
५६.
पुलकित उर का तट हुआ 
साथ मिला है आपका 
तन-मन वंशी वट हुआ 
•••
५७. 
घोर निराशा छा गई 
देख-देख फिर आपको 
आस-किरण लहरा गई 
•••
५८. 
मन में है विश्वास अब 
पंख चेतना के लगे 
छूने को आकाश अब 
•••
५९.
अति उत्तम हुस्नो-चमन 
जिसे देखकर हे प्रिये 
मन्त्र मुग्ध हैं ये नयन 
•••
६०. 
पूरब खिले पलाश क्यों 
मन से मन जब मिल गए 
तन की तुझे तलाश क्यों 
•••
६१. 
फूलों की रसगन्ध सी 
तन-मन में तुम आ बसी 
हो घुलती मकरन्द सी 
•••
६२. 
प्यार करो हर चीज़ से 
'महावीर' यह जान लो 
लेकिन ज़रा तमीज़ से 
•••
६३. 
वफ़ादार ये नैन हैं 
हाल सखी जाने नहीं 
साजन तो बेचैन हैं 
•••
६४. 
फूलों का उपहास यह 
दर्द जहाँ में बाँटना 
काँटों का इतिहास यह 
•••
६५. 
मन्त्र-मुग्ध जादू भरे 
इनको लोग सहेजते 
फूल-इत्र खुशबू भरे 
•••
६६. 
मन सोना, चाँदी बदन 
जीवन का आनन्द है 
खुशियों से महका चमन 
•••
६७. 
सुख उपजे बस दो घड़ी 
जीवन दुःख की सेज है 
विपदाएँ सम्मुख खड़ी 
•••
६८. 
मन पगला किससे डरा 
जीवन बीता पुण्य में 
पाप नहीं फिर भी मरा 
•••
६९. 
पापकर्म क्योंकर किया 
समझा पर सोचा नहीं 
समय बीतता ही गया 
•••
७०.
मिल-जुलकर यूँ कर हवन 
दुष्कर्मों का हो दमन 
सतकर्मों को कर नमन
•••
७१. 
जीवन का उपहार तुम 
सुनो हृदय की धड़कनों 
मेरा पहला प्यार तुम 
•••
७२. 
मोक्ष मिले उसको न गति 
शब्द साधना व्यर्थ है 
कवि कर्म छन्द हीन यदि 
•••
७३. 
चलना ही है ज़िन्दगी 
ठहर गए तो मौत है 
बढ़ना ही है ज़िन्दगी 
•••
७४. 
कर ले पगले बन्दगी 
पृथ्वी घूमे रात-दिन 
बीती जाये ज़िन्दगी 
•••
७५. 
जीवन इक संग्राम है 
'महावीर' धीरज धरो
सुख-दुःख इसमें आम है 
•••
७६. 
जीवन है बेकार क्यों 
जमकर तू संघर्ष कर 
माने अपनी हार क्यों 
•••
७७. 
जाने हो फिर मेल कब 
होता है दिन-रैन ही 
जन्म-मरण का खेल अब 
•••
७८. 
जीवन तो संघर्ष है 
लड़ते-भिड़ते अब यहाँ 
मोक्ष मिले तो हर्ष है 
•••
७९. 
क्या है ये जीवन-मरण 
पतझर के पश्चात ही 
कौंपल नई, नया चरण 
•••
८०. 
पुर्नजन्म का ज़िक्र क्या 
यादें कुछ बाक़ी नहीं 
तो करनी है फ़िक्र क्या 
•••
८१. 
सबसे पहले था खुदा 
उसने ही दुनिया रची 
और किया हमको जुदा 
•••
८२. 
कहाँ खड़े हो यार तुम 
नैतिकता को त्यागकर 
मित्र बने बेकार तुम 
•••
८३. 
है बुलन्द किरदार वह 
उसको सब कुछ दीखता 
कानों का सरदार वह 
•••
८४. 
इच्छाओं की आड़ में 
नैतिकता घुटती रही 
भौतिकता की आड़ में 
•••
८५. 
मानव की हितकारिणी 
चित्र खींचती सत्य का 
जनक छन्द की सारणी 
•••
८६. 
भव बाधा हरते चलो 
समस्त अच्छे कार्य का 
श्री गणेश करते चलो 
•••
८७. 
ताल उमंगों की बजी 
नाचे खूब जवानियाँ 
ताल तरंगों की बजी 
•••
८८. 
गायक क्यों फाड़े गला 
'महावीर' फलती नहीं 
बिन मांझे कोई कला 
•••
८९. 
मांगे मौत मिले कहाँ 
'महावीर' यह सत्य है 
टाले मगर टले कहाँ 
•••
९०. 
दिए मात्र दुःख आपको 
याद उसे दिल क्यों करे 
जो भूले माँ-बाप को 
•••
९१. 
सुख अपनाना भूल है 
कह गए 'महावीर' भी 
सुख ही दुःख का मूल है 
•••
९२. 
सब गुदड़ी के लाल सब 
'महावीर' कोई नहीं 
खड़ा सामने काल जब 
•••
९३. 
मन में अपने ठानिये 
याद रखो संकल्प निज 
हार कभी मत मानिये 
•••
९४. 
सत्य अनोखा जान तू 
मन की आँखें खोलकर 
'क्या हूँ मैं' पहचान तू 
•••
९५. 
दाम लगा हर चीज़ का 
दुनिया के बाज़ार में 
बिका हुनर नाचीज़ का 
•••
९६. 
सरकार हुई भंग क्यों 
ठग बन्धन था टूटना 
इस सवाल पर जंग क्यों 
•••
९७. 
दिल की दिलदारी दिखा 
और हुनर को तोलकर 
फ़न की फ़नकारी दिखा 
•••
९८. 
मिले मुहब्बत ले अगर 
नफ़रत तो बेकार है 
मिले इधर चाहे उधर 
•••
९९. 
हाथों में जो हाथ दे 
सच्ची है यह मित्रता 
जीवनभर जो साथ दे 
•••
१००. 
जाके हम रोयें कहाँ 
ग़ुज़री रात किसी तरह 
दिन अपना खोयें कहाँ
•••
१०१. 
गंगा द्वारे आ गई 
लोटे में गंगाजली 
सारे पाप मिटा गई 
•••
१०२. 
दया धर्म का सार है 
जीवन का आधार है 
मानव का विस्तार है 
•••
१०३. 
भले अल्प बदनाम हो 
काम करो ऐसे सदा 
दुनिया भर में नाम हो 
•••
१०४. 
कर सबसे ही प्यार तू 
बन्दा तू कुछ खास है 
रब का है अवतार तू 
•••
१०५. 
साथी अपना ढूँढ ले 
आने को है नींद अब 
कोई सपना ढूँढ ले 
•••
१०६. 
एक ख़बर झूठी छपी 
दंगों में इन्सान को 
मारा छूटी कपकंपी
•••
१०७. 
भूत पिचाश विकट बड़े 
कुर्सी पाने की ललक 
जोड़े कर सम्मुख खड़े 
•••
१०८. 
फूलों से मकरन्द ले 
मधुर लगेगी ज़िन्दगी 
दुःख में भी आनन्द ले 
•••
१०९. 
राम नाम जपते रहे 
लोग बने बगुला भगत 
दुनिया को ठगते रहे 
•••
११०. 
नाम रहे भगवान का 
फिर आएगा सामने 
कर्म किया इन्सान का 
•••
१११. 
शान्ति धैर्य गुमनाम है 
मानवता दिखती नहीं 
बस क़त्ल-सरे आम है 
•••
११२. 
रंगों का त्यौहार है 
इस होली के रूप में 
चारों तरफ़ बहार है 
•••
११३. 
भीख कभी मत मांगिये 
भाग्य मिला बिगड़ा अगर 
श्रम से उसे संवारिये 
•••
११४. 
सच्चाई में खोट है 
इसे ओढ़ संसार में 
पाई हमने चोट है 
•••
११५. 
लिख दे सच आकाश पर 
थामे मशाल सत्य की 
चारों तरफ़ प्रकाश कर
•••
११६. 
जनता को संकट मिला 
लोकतन्त्र में चैन से 
नेता ही फलते सदा 
•••
११७. 
हवा यहाँ दूषित हुई 
मुरझा गई कली-कली 
राजनीति ने जब छुई 
•••
११८. 
कानों में रस घोलकर 
क़र्ज़ उतारो साँस का 
मीठा-प्यारा बोलकर 
•••
११९. 
सच का तू बिस्तार कर 
बनना है 'अन्ना' अगर 
पहले शुद्ध विचार कर 
•••
१२०. 
फिर झूमती चली पवन 
दीप जले हैं याद के
फिर कांपने लगा बदन 
•••
१२१. 
मालिक यूँ सबको जड़े 
ज्यों माटी को रौंदकर  
कुम्भकार गढ़ता घड़े 
•••
१२२. 
सदैव सुख की चाह में 
धूप ही मिली मित्रवर 
जीवन रूपी छाह में 
•••
१२३. 
फिर क्यों न चार सू फले 
रौशनी महाज्ञान की 
विद्या का दीपक जले 
•••
१२४. 
अवकाश मुझे भी है कहाँ 
ग़ुम है अपने आप में 
जिसको भी देखो यहाँ 
•••
१२५. 
मदिरा फ्री में पीजिये 
और नोट की चोट पर 
अपना बहुमत दीजिये 
•••
१२६. 
गाँधी-सा आदर्श हो 
कुछ भी फिर मुश्किल नहीं 
सच्चा यदि संघर्ष हो 
•••
१२७. 
जीवन को शुरुआत दे 
मेहनत करे आदमी 
हर मुश्किल को मात दे 
•••
१२८. 
छोड़ा क्यों मंझधार तब 
पटका है फिर मौज ने 
लाकर तेरे द्वार जब 
•••
१२९. 
समय हमारा सारथी 
अजर-अमर है वीरता 
बढ़ते चलो महारथी 
•••
१३०. 
जीवन बीता काम में 
सिर्फ़ वासना देह की 
नहीं रमा मन राम में 
•••
१३१. 
कौन लगेगा पार कब 
साथी रोये होत क्या
जीवन है दिन चार जब 
•••
१३२. 
खिलता हुआ गुलाब-सा 
गोरी तेरा रूप है 
जिया हुआ बेताब-सा  
•••
१३३. 
कथनी-करनी एक हो 
जीवन तभी अमृत बने 
अगर इरादा नेक हो 
•••
१३४. 
दौड़ती और भागती 
यही शहर की ज़िन्दगी 
घुटन और कष्टोंभरी 
•••
१३५. 
कुछ लोग हैं अजीब से 
रिश्ते-नाते जोड़कर 
देते दर्द करीब से 
•••
१३६. 
तनिक नहीं अभिमान है 
हिन्दू-मुस्लिम, जैन-सिख 
अलग-अलग पहचान है 
•••
१३७. 
गागर में सागर हुआ 
घटनाएँ लिपिबद्ध की 
इतिहास उजागर हुआ 
•••
१३८. 
ज्ञान ज्योति घर-घर जली 
प्रसन्न हैं माँ शारदे 
वीणा की सरगम बजी 
•••
१३९. 
खून-ख़राबा मत करो 
जग को यह सन्देश दो 
अहिंसा के पथ पर चलो 
•••
१४०. 
होगी क्यों मुश्किल डगर 
कट जायेंगे रास्ते 
आप बने जो हमसफ़र 
•••
१४१. 
टूटे इतने हादिसे 
भटकते रहे उम्रभर 
मिले मगर ना रास्ते 
•••
१४२. 
किसकी नज़र लगी हमें 
बरसों बीत गए मगर 
एक ख़ुशी न मिली हमें 
•••
१४३. 
कैसी पश्चिम मान्यता 
कैसा हुआ विकास यह 
शेष नहीं अब सभ्यता 
•••
१४४. 
झूठे भाषण वायदे 
सिखा रहे नेता हमें 
लोकतन्त्र के क़ायदे 
•••
१४५. 
कहता वो निर्भीक है 
रिश्वत देना है बुरा 
लेना लेकिन ठीक है 
•••
१४६. 
इक दिन पाऊँगा डगर 
हाथ न आये सफलता 
कोशिश करता हूँ मगर 
•••
१४७. 
पूछ ले महावीर से 
जनक छन्द के तीर ने 
घाव किये गम्भीर से 
•••
१४८. 
हिन्दी नमन करे जिसे 
स्वर्णिम छायावाद के 
जयशंकर हैं कवि बड़े 
•••
१४९. 
मौत राह अब देखती 
सोचत-समझत दिन गया 
खेलत-कूदत ज़िन्दगी 
•••
१५०. 
कौन यहाँ चितचोर है 
गोरी तुझको देखकर 
मन में नाचे मोर है।
•••


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