मन की तो करने दे...
मन की तो करने दे...


किसे फ़ुर्सत कि पूछे कहाँ मसरूफ़ हो,
मुझे मेरे मन की तो करने दे
दिल मेरा इस उम्र में भी बच्चा है,
किसी एक ज़िद्द पे तो अड़ने दे
कैसे मानूँ कि ये सफ़र मुश्किल है
पाँव मेरे भी काँटों पे तो पड़ने दे
सीख जाते हैं तैरना टूटी कश़्ती वाले
छोड़ के साहिल लहरों में तो उमड़ने दे
किस काम का उजाला काँच की हिफ़ाज़त में
जलाये हैं चराग गर थोड़ा हवाओं से तो लड़ने दे।