मेरी दर्द भरी कहानी
मेरी दर्द भरी कहानी
मेरी दर्द भरी कहानी..
ये दास्तां है...पुरानी
कहूं मैं अपनी ज़ुबानी..
यू तो दर्द बहुत हैं..
जीवन मेरा व्यस्त है..
काम–काम में मेरा सारा
जीवन हमेशा त्रस्त है..
ऊपर–नीचे ..नीचे–ऊपर
दौड़–दौड़..आगे–पीछे कर..
बच्चों की चिलकारी
करती सारी परेशानी..
स्कूल की टेंशन..
होमवर्क का भी है.. मेंशन
करूं मैं धड़पड–पड़पड़
नहीं होती अब मुझसे झड़पड़
रोती रहती में दिनभर
फिर भी काम करती मदमस्त!
मेरी दर्द भरी कहानी..
ये दास्तां है...पुरानी
कहूं मैं अपनी ज़ुबानी.
पति का ऑफिस जाना
ऑफिस से घर को वापिस आना
बीच में होती रोक टोक
डब्बे की तैयारी में होती नोकझोंक
टाईम का होता बंधन..
सुबह सुबह होता मेरा मंथन..
भागदौड़ में में थक जाती..
फिर भी ज़िंदगी नहीं रुक पाती..
जहां से शुरू होती..
फिर वही शुरु हो जाती!
खत्म ना होती ज़िंदगी मेरी..
रोज़ एक नयी कहानी
मेरी दर्द भरी कहानी..
ये दास्ता है...पुरानी
कहूं मैं अपनी ज़ुबानी.