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Praveen Kumar

Inspirational

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Praveen Kumar

Inspirational

मजबूर पिता

मजबूर पिता

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अमीर लोगों की नही कर सकता मैं ,

बराबरी,में मज़दूर हूँ दिल से नाजुक,फूल हूँ।

खून पसीनें,से अपनी ज़िंदगी सींचता हूँ,

सख्त महेनत मेरी पहचान है,

ये धरती मेरी माँ हैं खुला आकाश मेरा घर,

मज़दूरी करना मेरी मजबूरी हैं, साहब और,

लिखा पढ़ाई बिना सभी की ज़िंदगी अधूरी हैं।

मेरा पूरा दिन चार रोटी कमाने में जाता।

मज़दूरी कर क़े अपना पूरा दिन में,

दुनिया भर की भागदौड़ के बीच गुजारता।

अपनी ख्वाहिशो को पैरों तले कुचल कर, 

परिवार के लिए हर रोज लौटते वक़्त,

मुस्कुराते हुए, खुशियोंकी जोली लेकर

सारे गम भुला ता रोज थोड़े त्योहार ले जाता।

कभी अपनी लारी पर सोते आराम करलेता।

तो कभी में तपती धूप में पसीना छूपा लेता। 

आनंद लेने,चायकी दुकान पर गप्पें लड़ाने जाता।

तो कभी दोस्तों के साथ,पावभाजी वड़ा खाता।

अपने दिन की शुरुवात में ज़िम्मेदारी के साथ,

करता और हर कदम ईमानदारी के रास्ते पर रखता।  


पाँव के छाले में बच्चों अपने से मैं रोज छुपाता। 

उनकी ज़िद पूरी करने के लिए,

अपनी जान न्योछावर करता,

मैं उन्हें काबिल बनाने के लिए,

नहीं दिन देखता नही रात के सूरज चाँद

सख़्त महेनत करता।

इसी सोच से मैं आगे बढ़ता

अपने हर्ष के आँसूओ को पी जाता प्रथना कर,

प्रभु से में स्वस्थ जीवन जीने का आशीर्वाद माँगता।



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