STORYMIRROR

Selina Subba

Abstract

4  

Selina Subba

Abstract

मेरी कविता मेरी परछाई है

मेरी कविता मेरी परछाई है

1 min
966


मेरी कविता मेरी परछाई है, 

कागज पे लिखी एक दास्तान है

कभी मेरी मस्तिष्क की कहानी

तो कभी मेरी जिंदगी की जुबानी 

जो भी है बस् मेरी अपनी है। 


कभी जिंदगी जंगलसा लगे

अपना जानवरो सा लगे

छुप जाती हूँ इसकी आचलमे। 

हसू मैं इसकी संग, रोऊँ भी इसकी संग

मतलबियोके भिड़मे ये तो मेरी दर्पण है।


जब मैं थक के बैठ जाऊ

ये मेरी एक प्याला चाय हैं

जब राहे धुँधली सी लगे

पैर लड़खड़ाने लगे

कभी लाठी तो कभी मेरी चश्मा है ये।

 

जिन्दगी की जंगमे जब मैं खुदको भी भूल जाऊ

ये मेरी बोल्ती हुईं आत्मा है.. 

बेगानों के झुंडमे जबमें खो जाऊ 

ये पेहचाना हुआँ कोई एक चेहरा हैं

हाँ ये सच है मेरी कविता मेरी खुद की परछाई है। 






Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract