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Anupama Sansanwal

Tragedy

4  

Anupama Sansanwal

Tragedy

मेरी कलम

मेरी कलम

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काश! मेरी कलम कोई मुद्दा उठाती 

वो  मुद्दा होता उन कलियों का

जो खिलने से पहले ही कुचली जाती हैं, 

वो मुद्दा होता - उन पंखुड़ियों का जो रोज मसली  जाती हैं 

काश! मेरी कलम उन्हें बचा पाती ll


वो आहें जो सिसकी भी ना बन पाईं, 

वो चीखें जो गले से कभी बाहर ही ना आईं, 

काश! मेरी कलम उन आहों, 

उन चीखों की आवाज बन पाती l


जब चील कौवों ने उसे नोचा होगा, 

हर चोट पर ज़ख्म और गहरा होगा, 

बचने के लिए कहीं छिपी भी होगी, 

कहीं भागी, कहीं गिरी भी होगीl

काश! मेरी कलम उस ज़ख्म की दवा बन पाती, 

काश! मेरी कलम उसे बचा पाती l


उस पल को बहुत  कोसा होगा, 

हर आती रोशनी को बड़ी उम्मीद से देखा होगा, 

काली रात के अँधेरे में अपनों को ढूँढा होगा , 

मरने से पहले भी बहुत तड़पी होगी, 

कभी रोई, कभी भड़की होगी, 

जिन्दा रहने की चाह में, 

हारी तो सही पर, लड़ी ज़रूर होगी, 

काश! मेरी कलम उसकी उम्मीद बन पाती 

काश! मेरी कलम उसे जिन्दा रख पाती l


चील कौओं को पकड़ जब पिजरें में डाला, 

तो किसी ने दिया उनके अधिकार का हवाला, 

इस पाप को किसी ने उनकी नादानी बताया, 

इस दुष्कर्म को चील कौओं की प्रवृति बताया, 

दोष मढ़ दिया गया, फिर से उसी पर 

जिसने इसमें अपना जीवन गंवाया l


काश! मेरी कलम इन चील कौओं के अधिकार छीन पाती, 

काश! मेरी कलम उन्हें दंड दे पातीl



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