मेरी कलम मेरी स्याही
मेरी कलम मेरी स्याही
जब तब रक्त बहा कलम का,
जब तब रंग दिए कोरे पन्ने,
स्याही में भीगे अक्षरों से.
जब तब बीमार समाज
लाइलाज हुआ,
जब तब सुई रुपी कलम
उठा हर इक कवि का,
घाव कर, शब्दों की दवा
से ईलाज़ हुआ।
कोरे कागज़ को
रणभूमि बना,
कलम की नोक को
धार बना,
शब्दों को शांत बाण बना,
युद्ध का बिगुल बजा,
समाज के कठोर
विषयों पर आवाज़ उठा।